शहर …कुछ आपका , कुछ हमारा 


भरी जेठ दुपहरी में , साईकिल सवार सूट-बूट साजे एक रौबीले नवजवान को जब लोक प्रसिद्ध कजरी ‘ पिया मेंहदी लिया द मोती झील से , जाइके साइकिल से न । ‘ गाते हुए कल्लू भाई ने सुना तो उनसे रहा न गया अपनी पान की टपरी पर बैठे बैठे आवाज़ दे मारी ~

अरे ओ शहरी बाबू हियां कहाँ रास्ता भुलाई गए ~ कल्लू भाई जान

अरे का हो चचा , हम तुम्हरे पास आवत रहेन और इका तुम धरे धराये हमका गांव निकाला कर दिहे ~ वरुन बाबू

मतबल हम समझे नाहीं , तुम का कहना चाहत हो ~ कल्लू भाई जान

चचा तुम्हारी उमर त कछु भुलै का न लागत है , अरे हम तोहरे सरोज बिटिया क भतीजा वरुण ।अपने लड़काई में त हम सब आप के हियां ही दुपहरिया काटत रहें ~ वरुन बाबू ने बचपन की स्मृतियों को झकझोरते हुए चचा को याद दिलाया

ह्म्म्म …. वरुन बाबू , सुने तुम तो कहीं परदेश गए रहे न अपनी पढ़ाई की खातिर ~ कल्लू भाई जान

हां चचा उ पढ़ाई त कब का पूरी होई गयी , हर बार गर्मी में काम ख़ातिर आई न पावत रहे , पर अबकी बारी कुछ काम अइसन निकल आई कि सोचेंन गांव का गांव घूम लिहैं और कुछ कम भी हो जाई ~ वरुन बाबू

चलो अच्छा किहेन की गांव घूमे चले आयन , नाही तो जो एक बार परदेश जात है वो लौट के कहाँ आवत है ~ कल्लू मियां

अइसन ना हो चाचा , अब जेकर वजूद ही ई गांव हो उ भला कहां जाइ और कितनी दूर कभी न कभी त आवै के पड़बै करी ~ वरुन बाबू

वइसे अभी भरी जेठ दुपहरी में कहां चल दिहा, काम कुछ ज्यादे जरूरी ब का ~ कल्लू मिया

नाहीं हो चचा , काम के ख़ातिर नाहीं बस ऐसें गांव घूमे निकल देहली ~ वरुन बाबू ने कल्लू भाई जान के सवाल को हल्का करने के लिए कहा

क्योकिं वो ये नहीं चाहते थे कि गांव में लोगों को इस बात की ताक़ीद लगे कि वो हियां काम के सिलसिले में आये हैं । बाकी वक़्त के साथ तो उनको पता लगना ही था ।

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